मुरली ने छेडी जीत की धुन

चेन्‍नई और बेंगलुरू या चेन्‍नई और हैदराबाद के बीच सैकडो मील के फासले है। यही वजह है कि कलात्‍मक क्रिकेट की द्रविड शैली हो या फिर वेरी वेरी स्‍पेशल लक्ष्‍मण शैली, इसे चेन्‍नई के समुद्र तट तक पहुंचने में काफी वक्‍त लग गया। लेकिन आखिरकार यह शैली इस दशक में वहां पहुंच गई और इसकी झलक मिलती है मुरली विजय की बल्‍लेबाजी में। घरेलू क्रिकेट में दमदार प्रदर्शन के बावजूद भारतीय क्रिकेट प्रेमियों ने उनका नाम पहली बार उस वक्‍त सुना जब 2008 में गंभीर के घायल होने के बाद उन्‍हें आस्‍ट्रेलिया के खिलाफ ओपनिंग करने का मौका मिला। उस वक्‍त इसका श्रेय उन्‍हें नहीं बल्कि विस्‍फोटक बल्‍लेबाज से चयनकर्ता बने श्रीकांत को दिया गया। हालांकि पहले टेस्‍ट में मुरली ने कोई बडा स्‍कोर खडा नहीं किया लेकिन बता दिया कि वह किसी के रहमो करम पर नहीं बल्कि अपने बलबूते टीम में आए है।

यही विजय अब मुरली की दूसरी धुन छेडते नजर आ रहे है। शास्‍त्रीय शैली में पारंगत यह बल्‍लेबाज जब आईपीएल में हॉट फेवरेट माने जाने वाली बेंगलुरू रॉयल चैलेंजर्स के खिलाफ खेलने के लिए उतरा तो उसका रिकार्ड काफी खराब था। वह टीम की उम्‍मीदों पर खरा नहीं उतर पा रहा था। बल्‍लेबाजी क्रम में इसके चलते बार बार बदलाव किया जाता रहा। चेपॉक पर उन्‍हें बल्‍लेबाजी करते देखने वालों को यकीन नहीं हुआ कि वह बिग हिट भी लगा सकते है। वह भी कोई क्रास बैट से नहीं बल्कि परंपरागत क्रिकेटिंग शॉट्स का इस्‍तेमाल कर उन्‍होंने बल्‍लेबाजी का फ्यूजन रच डाला।

मुरली विजय के अलावा चेन्‍नई की टीम में बडे बडे नामों के बीच एक और नाम तेजी से मैच विनर के रूप में सामने आ रहा है। टीम के शीर्ष गेंदबाजों की नाकामी को शादाब जकाती ने दूर कर दिया है। गोवा का यह स्पिन गेंदबाज पिछले सीजन में भी प्रभावी रहा था, लेकिन इस साल तो उसने कमाल ही कर दिया। शुरूआत में उनकी जगह भारतीय टीम में जगह बनाने वाले अश्विन को मौका दिया गया। अश्चिन ने शुरूआती चमक तो दिखाई लेकिन बाद के मुकाबलों में वह चेन्‍नई के लिए कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाए। अश्विन की जगह जकाती को मौक मिला और उन्‍होंने इसे दोनो हाथों से भूना लिया। जकाती ने चार ओवरों में महज 17 रन दिए इसके भी कहीं ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण ये रहा कि उन्‍होंने फार्म में चल रहे रॉबिन उत्‍थपा और विराट कोहली के विकेट चटकाए।

आईपीएल में मनीष पांडे और जैक कैलिस की ओपनिंग जोडी के बीच पहले विकेट की साझेदारी का औसत स्‍कोर 88 रन है। यह दोनों बल्‍लेबाज बेंगलुरू की जीत के आधार स्‍तंभ बने हुए है। चेन्‍नई के खिलाफ यह जोडी केवल 12 रन जोड पाई। इसका नतीजा बेंगलुरू की पारी पर पडा। अब तक बेंगलुरू के मध्‍यक्रम पर एक अच्‍छी शुरूआत को बडे स्‍कोर में बदलने की जवाबदारी रहती आई है। इस मुकाबले में पारी को संवारने का काम मध्‍यक्रम को करना पडा। रनों की गति बढाने और विकेट थामने की कवायद में टीम फंस कर रह गई।

टूर्नामेंट जैसे जैसे आगे बढता जा रहा कुंबले का प्रदर्शन शबाब पर है। इंटरनेशनल क्रिकेट को अलविदा कह चुके इस गेंदबाज को देखकर कोई भी नहीं कह सकता कि उनकी क्षमता में कोई कमी आई है। क्रिकेट गलियारों में तो ये आईपीएल के मुकाबलों के बाद ये चर्चा आम है कि टी20 फार्मेट में भारत के सर्वेश्रेष्ठ बल्‍लेबाज सचिन तेंदुलकर है और गेंदबाजी में यही दर्जा अनिल कुंबले को हासिल है। क्रिकेट के इस फार्मेट में सचिन और कुंबले दोनों ने ही अपनी काबिलयत साबित की है। हालांकि यह दोनों ही सितारें वेस्‍टइंडीज में वर्ल्‍ड कप के दौरान नजर नहीं आएंगे। इन दोनों की सफलता के पीछे है दृढ इच्‍छाशक्ति और जीत का जस्‍बां। सलाम सचिन, सलाम कुंबले। यू ऑर ग्रेट।

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